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कुछ यादगार लम्हा….|

kranti
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जिसकी बफा की मैं कसमे खाया करता था,
महफ़िलो में ॥!
जख्म वो कुछ ऐसे दे गए हैं मुझे ,
अब उसकी बेबफायी पे रोना आता हैं !!
जिक्र कर उनका थकता नहीं था मैं हर सुबह ,हर शाम
अब तो मुद्दते बीत गई हैं लिए उनका नाम…..
वो प्यार बस चंद दिनों का मेहमान था ,
छः मासु बच्चे की तरह जो अपनी माँ के गर्भ ,
में ही दम तोड़ गया …..!
काश वो इस धरती पे आ गया होता …
स्वस्थ , नवीन , परिपक्व बालक की तरह …
पर अफ़सोस उसे गर्भ में ही मर जाने दिया …….?
दर्द तो हुआ पर क्या करे …?
मेने पूछा था उससे ……?
” आखिर क्यों इतनी निर्दयता , क्रूरता ”
उसका जबाब तो हिला देने वाला था ॥
उसका जबाब था ..
” मेरे अन्दर ये प्यार किसी और का पल रहा हैं ”
काश धरती फट गयी होती …
लेकिन उसकी जगह दिल जरुर फट गया …
रक्त की बुँदे आंसुओ के रूप में ,
गालों पे नदी की तरह बह निकले ,
दिशाहीन , लेकिन मार्मिक ……
कोई नहीं था मेरे पास जो इन ,
आंशुओ के शैलाव को दिशा दे सके॥
एक उसकी यादो के सिवा ।!
पर शायद अब वो ज्यादा खुश है ,
में दुआ करूँगा वो हमेशा खुश रहे …!
मैं बहुत दूर निकल जाना चाहता हूँ …
इन सब खयालो से ….
पर हो नहीं पता …
मेरा उसमे अंश न सही ,
पर ‘उसका अंश मेरे में आज भी जिन्दा हैं ‘
पर एक मिशाल की तरह …..
जो मुझे ख़ुशी दे देती हे ,
की में बेवफा नहीं था…
प्यार दिल से किया था.
इन छः महीनो में…..

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