kranti
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वीरान में भटक कर
सन्देश खोजता हूँ ,
है कल्पना विदेश की
मैं देश खोजता हूँ |
देखता हूँ हर जगह
दिमाग ही दिमाग है !
नवजवान जल रहा ,
लगाई किसने आग है !
किसकी है ? ये साजिश !
इन्सान खोजता हूँ |
है कल्पना विदेश की मैं देश खोजता हूँ
कौन ? रोकता है ,विकास की गति को !
हम चुन नहीं है पाते अच्छे सभापति को !
हर नवजवान है , ताकत हर बुजुर्ग है बिद्वान ,
फिर भी न जाने! क्यों ? डर रहा है हिंदुस्तान
बिखरे हुए चट्टानों में इन्सान खोजता हूँ ,
मंदिर के पत्थरों में भगवान् खोजता हूँ ||
अजीब झंझटो से भारत ,
गुजर रहा है
ये गुलिस्तान हमारा कैसे बिखर रहा है ?
कल ज्ञान बाटते थे ,आज खुद को तरस रहे है..!
उजरे हुआ दिलो में, सम्मान खोजते है ,
है कल्पना विदेश की हम देश खोजते ही
जय हिंद ………………………!!!!!!!
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